Shri Saraswati Puja Date 2nd April 1992 : Place Yamunanagar Type Puja Speech Language Hindi CONTENTS | Transcript | 02 - 05 Hindi English Marathi || Translation English Hindi Marathi ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK हमें सरस्वती की भी आराधना करनी चाहिए। सरस्वती का कार्य बड़ा महान है। महासरस्वती ने पहले सारा अंतरिक्ष बनाया। इसमें पृथ्वी तत्त्व विशेष है। पृथ्वी त्त्व को इस तरह से सूर्य और चन्द्रमा के बीच में लाकर खड़ा कर दिया कि वहाँ पर कोई सी भी जीवन्त क्रिया आसानी से हो सकती है। इस जीवन्त क्रिया से धीरे धीरे मनुष्य भी उत्पन्न हुआ। परन्तु हमें अपनी बहुत बड़ी शक्ति को जान लेना चाहिए। वो शक्ति है जिसे हम सृजन शक्ति कहते हैं, क्रिएटिविटी कहते हैं। यह सृजन शक्ति सरस्वती का आशीर्वाद है जिसके द्वारा अनेक कलाएं उत्पन्न हुई। कला का प्रादूर्भाव सरस्वती के ही आशीर्वाद से है। मुझे बड़ा आनन्द हुआ कि आज सरस्वती का पूजन एक कॉलेज में हा रहा है। इसके आसपास भी कई स्कूल-कॉलेज हैं। मानो जैसे यह जगह विशेषकर सरस्वती की पूजा के लिए ही बनी है। हमारे बच्चे स्कूलों में विद्यार्जन कर रहे हैं। पर हमें ध्यान रखना चाहिए कि बिना आत्मा को प्राप्त किए हम जो भी विद्या पा रहे हैं वो सारी अविद्या है। बिना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किए आप चाहे साइंस पढ़ें या अर्थशास्त्र, उसे न तो आप पूरी तरह समझ सकते हैं और न ही उसको अपनी सृजन शक्ति में ला सकते हैं। बच्चे दो प्रकार के होते हैं एक तो पढ़ने के शौकीन होते हैं और दूसरे जिन्हें पढ़ने का शौक नहीं होता। कुछ बच्चों के पास कम बुद्धि होती है और कुछ के पास अधिक। बुद्धि भी सरस्वती की देन है लेकिन आत्मा से मनुष्य में सुबुद्धि आ जाती है। बुद्धि से पाया हुआ ज्ञान जब तक आप सुबुद्धि पर नहीं तोलिएगा तो वह ज्ञान हानिकारक हो जाता हैं। इसलिए बहुत से लोग सोचते हैं कि पढ़ाने लिखाने से बच्चे बेकार हो जाएंगे, सफेदपोश होकर फिर खेती नहीं करेंगे। बस अपने को कुछ विशेष समझकर के और इसी बहकावे में रहेंगे। किन्तु आत्मसाक्षात्कार को पाकर जो विद्यार्जन होता है उसमें बराबर नीर-क्षीर विवेक आ जाता है। वे समझ लेते हैं कि कौनसी चीज़ अच्छी है और कौनसी बुरी है। कौनसी चीज़ सीखनी चाहिए और कौनसी चीज़ नहीं सीखनी चाहिए। उससे पहले कोई मर्यादाएं नहीं होती। मनुष्य किसी भी रास्ते पर जा सकता है और किसी भी ओर मुड़ सकता है और कोई भी बुरे काम कर सकता है। आजकल आप जानते हैं कि छोटे बच्चों में बहुत सारी बुराइयाँ आने की संभावना है और बड़ों में तो हो ही रहा है कि ड्रग्स आ गए और दुनिया भर की गंदी बातें बच्चे सीख रहे हैं और परेशानी में फंस गए हैं। ये सब चीज़ों का इलाज एक ही तरीके से हो सकता है कि इनके अन्दर आप आत्मा का साक्षात्कार करें। आत्मा का साक्षात्कार मिलने से ही सरस्वती की भी चमक आपकी बुद्धि में आ जाती है और जो बच्चे पढ़ने लिखने में कमजोर होते हैं वो भी अच्छा कार्य करने लग जाते हैं। इसके बाद कला की उत्पत्ति होती है अगर आप कला को बगैर बहुत आत्मसाक्षात्कार के ही अपनाना चाहें तो वह कला अधूरी रह जाती है या वो बेमय्यादा कहीं ऐसी जगह टकराती है कि जहाँ उसकी कला का नामोनिशान नहीं रह जाता। तो पहले आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करके ही सरस्वती का पूजन करना एक बड़ी शुभ बात है। आज का दिन, आप जानते हैं, नवरात्रि का पहला दिन है और इस दिन भी जो शालीवाहन का शक है उसका भी आज पहला दिन है। मतलब बहुत ही शुभ दिवस पर ये कार्य हो रहा है। तो हमें सरस्वती के प्रति उदासीन नहीं Original Transcript : Hindi रहना चाहिए। मैं देखती हूँ कि जहाँ-जहाँ लोग खेती करते हैं वहाँ-वहाँ धीरे-धीरे उनका संबंध प्रकृति से होता है और प्रकृति की जो खुबसूरती है उसे वो प्रकट करना चाहते हैं । जो कलाकार होता है वो भी प्रकृति की खूबसूरती | को देखकर हबह उस तरह से न बना उसमें अपनी भावना डालकर उसे एक नया रूप दे देता है। आपने ये जो सब बनाया हुआ है कितना कलात्मक है। कितनी सुन्दरता से चक्र बनाए फिर श्री गणेश बनाए है-सबकुछ देखते ही लेंगे बनता है। जब आप कला को पाने लग जाएंगे और जब आप कला की संवेदना समझ शुभ तब आप कलात्मक चीज़ों की ही ओर रहेंगे। बहुत सी चीजें लोग बनाते हैं, पर कुछ चीजें ऐसी बनती हैं जिसमें स्वयं चैतन्य बहता है। ऐसे तो पृथ्वी तत्त्व से ही बहुत से स्वयंभू निकल आए हैं लेकिन अगर आत्मसाक्षात्कारी मनुष्य कोई पुतला बनाता है या कोई कलात्मक चीज़ बनाता है तो उसमें से भी चैतन्य आने लग जाता है। सुन्दर होने के साथ- साथ ऐसी कृति में एक तरह की अनन्त शक्ति होती है। किसी साधारण कलाकार की बनाई कला शीघ्र समाप्त हो जाती है। उसके प्रति न तो लोगों की आस्था होती है और न ही श्रद्धा लेकिन अगर कोई कलाकार आत्मसाक्षात्कारी हो तो उसकी कला अनन्त तक चलती है क्योंकि उसके अन्दर अनन्त की शक्ति निहित होती है क्योंकि उसने जो भी बनाया वो आत्मा की अनुभूति से बनाया है, जो आत्मा को रुचिकर है जो आत्मा पसंद कुछ करे ऐसी चीज़ वह बनाता है। कलात्मकता इस तरह से मनुष्य में बहुत सुन्दरता से पनपती है और ऐसी जितनी भी कला की चीजें बनती हैं वो हमेशा के लिए संसार में मानी जाती हैं । हिन्दुस्तान से बाहर भी मैंने देखा कि जो कलाकार आत्मसाक्षात्कारी थे उनकी कला आज तक लोग मानते हैं। एक माइकल एन्जेलो नाम के बड़े भारी कलाकार थे। बहुत सुन्दर उन्होंने रचना की। बहुत सुन्दर सब कुछ बनाया। आज तक लोग उसे एक बड़े ही गौरव के साथ समझते हैं। आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति की कला अनन्त की शक्ति से प्लावित होती है। तो आप लोग भी आत्मसाक्षात्कारी हो गए हैं। हरियाणा में इतने लोग आत्मसाक्षात्कारी हो गए और अब और भी बहुत सारे लोग आएंगे, वो भी आपके ही जैसे एक दिन सहजयोगी हो जाएंगे और समझ जाएंगे कि सहजयोग क्या है । किन्तु जब लोग सहजयोग में आ गए तो अब आप कला की ओर अपनी दृष्टि बढ़ायें। कला की ओर दृष्टि बढ़ाने से एक तो जीवन में सौन्दर्य आ जाता है और जीवन का रहन-सहन सुन्दर हो जाता है। उसके लिए जरुरी नहीं कि आप बहत रुपया-पैसा खर्च करें। मिट्टी में भी कला भरी है। आप मिट्टी की भी कोई चीज़ बनायें तो भी वह कलात्मक हो सकती है। हमारे ऊबड़-खाबड़ जीवन में यदि थोड़ी सी कला की झलक आ जाए तो बड़ा सुख और आनन्द मिलता है। इसलिए आप लोगों की दृष्टि अब कला की ओर जाए तो बड़ा अच्छा हो जाए सभी लोगों को के लिए। यहाँ के लोग भी कुछ कलात्मक चीज़ें बनाने का प्रयत्न करें। हाथ से बनी हुई चीज़ों में चैतन्य बहुता है। मशीनों का अत्याधिक प्रयोग करने से ही वातावरण दूषित हो गया है। इसका इलाज ही यह है कि आप कलात्मक चीज़ों की ओर बढ़े। जब लोग कलात्मक चीज़ों की ओर बढ़ेंगे तो एक तरह की श्रद्धा कला के प्रति हो जाएगी। सबसे बड़ी बात तो है कि हम हजारों चीजें जो बेकार की खरीदते हैं वो बंद हो जाएंगी। हाथ से बनी चीज़ों के द्वारा अपने हृदय का आनन्द हम दूसरों को समर्पित करते हैं। ये फूल आपने इतने कलात्मक ढंग से लगाए हैं। इनकी ओर देखते ही हठात मैं निर्विचार हो जाती हँ। मुझे अन्दर कोई विचार नहीं आता निव्व्याज्य निर्विचार होकर के सच में इसे देख रही हूँ। इसको बनाने में जिसने जो कुछ भी आनन्द इसमें डाला है वो पूरा का पूरा मेरे सर से ऐसे बह रहा है जैसे गंगा जी बह रही हैं। उससे एकदम बहुत शान्त और आनन्दमयी भावना आ जाती है। जब तक कलात्मक चीजें नहीं 3 Original Transcript : Hindi होंगी तब तक आपका विचार चलता रहेगा। कलात्मक चीज़ हठात आपको निर्विचारिता में उतारेगी और उसका सौन्दर्य देखते ही आपको ऐसा लगेगा कि आप निर्विचार हैं क्योंकि सौन्दर्य देखने से ही चैतन्य एकदम बहने लगता है और उस सौन्दर्य के कारण ही एकदम से आप निर्विचार हो जाते हैं । इसलिए आदिशंकराचार्य ने इसे सौन्दर्य लहरी कहा। अब यह सोचना है कि किस तरह से यह सौन्दर्य स्थापित हो। सबसे पहले सौन्दर्य में हमेशा वैचित्र्य होना चाहिए, वैराइटी होनी चाहिए । परमात्मा ने यदि सबकी शक्ल एक सी बनायी होती तो कैसे लगते हम लोग? सभी लोग अलग-अलग प्रकार के कपड़े पहनते हैं। हमारे देश की सभी स्त्रियां अलग ढंग, रंगों की साडियां पहनती हैं। यह वैचित्र्य केवल हमारे देश में ही मिलता है। विकसित देशों की औरतें तो गुलामों की तरह एक ही प्रकार के फैशन करती हैं। एक ही प्रकार के बाल बनवाती हैं। उनमें कोई फर्क ही नहीं प्रतीत होता। उनके अन्दर जो आत्मा है वह दबी हुई है। उनमें न वैचित्र्य है और न ही सृजन शक्ति। अब कला का भी यही हाल हो गया है। विदेशों में अच्छी कला कृतियां अधिक नहीं निकलतीं। केवल आलोचक ही रह गए हैं। आलोचक दूसरे आलोचकों की आलोचना में लगा है। अब कलाकार भी डरते हैं क्योंकि कोई सी भी कला बनाओ तो वह क्रिटिक बैठे हुए उनको पहले पड़तालेंगे कि यह ठीक है या नहीं। और दूसरी बात यह बताएंगे कि इसका पैसा कितना मिल सकता है। जब कला पैसे पर उतर आती है तब उसकी आत्मा ही खत्म हो जाती है । कला आनंदमयी होनी चाहिए न कि उससे कितना पैसा मिले। जब आपकी यह धारणा और लक्ष्य हो जाएगा तो स्वयं आत्मा ही आपको ऐसी प्रेरणा देगा कि आप ऐसी- ऐसी सुन्दर चीजें बनायेंगे जो भूतो न भविष्यति, पहले कभी बनी नहीं और न बनेगी। एक से एक कलात्मक चीज़ लोग बनायेंगे और शांत प्रकृति गांवों के लोग इस प्रकार की रचना कर सकते हैं। शान्तिमय, ध्यानावस्था में रहे बिना कला सृजन अधूरा रह जाता है या मर्यादा विहीन। आपको कला का तंत्र तथा तकनीक मालूम होनी चाहिए । जब आपको आत्मसाक्षात्कार होता है तभी आपकी सृजन कला बढ़ जाती है। हमने देखा है सहजयोग में आने के बाद बहुत सारे संगीतकार जगप्रसिद्ध हो गए। गणित जानने वाले चार्टेड अकौंटंट कवि हो गए। उन्होंने पहले कभी कविता नहीं लिखी। इसी प्रकार जो कभी स्टेज पर नहीं आए वो बड़े-बड़े भाषण दे रहे हैं, जिन्होंने गाना कभी गाया नहीं था वो बहुत सुन्दर गाना गाने लग गए। आस्ट्रेलिया में एक सहजयोगिनी बहुत सर्वसाधारण एक कलाकार थी लेकिन आज उसका सारी दुनिया में नाम फैल गया है। इस प्रकार जब आप पर सरस्वती जी की कृपा होती है तो आप कलाकार बन जाते हैं लेकिन आप आत्साक्षात्कारी कलाकार हो जाते हैं। जब आप आत्मसाक्षात्कारी कलाकार हो जाते हैं तब आपका सारा ही व्यक्तित्व बदल जाता है और जो भी सृजन आप करते हैं उसमें वो शक्ति, जिसे मैं अनन्त की शक्ति कहती हूँ, वह समाहित होती है और ऐसी बनाई हुई चीजें, ऐसी क्रिया से जिसने कोई सा भी कार्य सम्पन्न किया हो, उसकी कीमत आंकी ही नहीं जा सकती और अनन्त तक उसकी सौन्दर्य शक्ति प्रदर्शित होती रहती है। चाहे वह कलाकार की मृत्यु को हजारों वर्ष हो जाए तो भी लोग उस कला को देखकर के कहते हैं कितनी सुन्दर चीज़ है। 4 Original Transcript : Hindi सहजयोगियों के लिए बहुत जरुरी है कि वह कला में उतरें और कला को समझे। आपके साथ सरस्वती की कृपा हमेशा बनी रहे। विशेषकर के आज जो आप आत्मसाक्षात्कारी हुए हैं ये तो और भी अच्छी बात है कि आत्मसाक्षात्कार के बाद अगर कला ली जाए तो बहुत ही सुघड़ और बहुत ही सहज हाथ में लग जाती है। जैसे हमारे स्कूलों में परदेश से बच्चे आए इन्होंने कभी कुछ ड्राइंग नहीं किया, इन्हें कुछ पता नहीं था। एकदम सीधे- सीधे चले आए और अब जबसे इनको आत्मसाक्षात्कार मिला है एकदम से ही वो इस कदर बढ़िया सीख गए। एक तो हिन्दी भाषा सीख गए, फिर अब बहुत सुन्दर चित्रकारी करते हैं, फिर अब मिट्टी के बर्तन बनाना शुरू किया। अब उनको लगता है अब क्या बनायें। फिर इन्होंने एक घर बनाया फिर उसके ऊपर माड़ी बनायी और तरह-तरह की चीजें वो बनाने में लगे हैं। ऐसी जो अन्दर से प्रेरणा आती है वह भी सहजयोग की वजह से और हुए इस प्रेरणा को पूरित करने वाली शक्ति भी सहजयोग से आ जाती है| आप सबको अनन्त आशीर्वाद! ০ ---------------------- 19920402_Shri Saraswati Puja_Yamunanagar.pdf-page0.txt Shri Saraswati Puja Date 2nd April 1992 : Place Yamunanagar Type Puja Speech Language Hindi CONTENTS | Transcript | 02 - 05 Hindi English Marathi || Translation English Hindi Marathi 19920402_Shri Saraswati Puja_Yamunanagar.pdf-page1.txt ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK हमें सरस्वती की भी आराधना करनी चाहिए। सरस्वती का कार्य बड़ा महान है। महासरस्वती ने पहले सारा अंतरिक्ष बनाया। इसमें पृथ्वी तत्त्व विशेष है। पृथ्वी त्त्व को इस तरह से सूर्य और चन्द्रमा के बीच में लाकर खड़ा कर दिया कि वहाँ पर कोई सी भी जीवन्त क्रिया आसानी से हो सकती है। इस जीवन्त क्रिया से धीरे धीरे मनुष्य भी उत्पन्न हुआ। परन्तु हमें अपनी बहुत बड़ी शक्ति को जान लेना चाहिए। वो शक्ति है जिसे हम सृजन शक्ति कहते हैं, क्रिएटिविटी कहते हैं। यह सृजन शक्ति सरस्वती का आशीर्वाद है जिसके द्वारा अनेक कलाएं उत्पन्न हुई। कला का प्रादूर्भाव सरस्वती के ही आशीर्वाद से है। मुझे बड़ा आनन्द हुआ कि आज सरस्वती का पूजन एक कॉलेज में हा रहा है। इसके आसपास भी कई स्कूल-कॉलेज हैं। मानो जैसे यह जगह विशेषकर सरस्वती की पूजा के लिए ही बनी है। हमारे बच्चे स्कूलों में विद्यार्जन कर रहे हैं। पर हमें ध्यान रखना चाहिए कि बिना आत्मा को प्राप्त किए हम जो भी विद्या पा रहे हैं वो सारी अविद्या है। बिना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किए आप चाहे साइंस पढ़ें या अर्थशास्त्र, उसे न तो आप पूरी तरह समझ सकते हैं और न ही उसको अपनी सृजन शक्ति में ला सकते हैं। बच्चे दो प्रकार के होते हैं एक तो पढ़ने के शौकीन होते हैं और दूसरे जिन्हें पढ़ने का शौक नहीं होता। कुछ बच्चों के पास कम बुद्धि होती है और कुछ के पास अधिक। बुद्धि भी सरस्वती की देन है लेकिन आत्मा से मनुष्य में सुबुद्धि आ जाती है। बुद्धि से पाया हुआ ज्ञान जब तक आप सुबुद्धि पर नहीं तोलिएगा तो वह ज्ञान हानिकारक हो जाता हैं। इसलिए बहुत से लोग सोचते हैं कि पढ़ाने लिखाने से बच्चे बेकार हो जाएंगे, सफेदपोश होकर फिर खेती नहीं करेंगे। बस अपने को कुछ विशेष समझकर के और इसी बहकावे में रहेंगे। किन्तु आत्मसाक्षात्कार को पाकर जो विद्यार्जन होता है उसमें बराबर नीर-क्षीर विवेक आ जाता है। वे समझ लेते हैं कि कौनसी चीज़ अच्छी है और कौनसी बुरी है। कौनसी चीज़ सीखनी चाहिए और कौनसी चीज़ नहीं सीखनी चाहिए। उससे पहले कोई मर्यादाएं नहीं होती। मनुष्य किसी भी रास्ते पर जा सकता है और किसी भी ओर मुड़ सकता है और कोई भी बुरे काम कर सकता है। आजकल आप जानते हैं कि छोटे बच्चों में बहुत सारी बुराइयाँ आने की संभावना है और बड़ों में तो हो ही रहा है कि ड्रग्स आ गए और दुनिया भर की गंदी बातें बच्चे सीख रहे हैं और परेशानी में फंस गए हैं। ये सब चीज़ों का इलाज एक ही तरीके से हो सकता है कि इनके अन्दर आप आत्मा का साक्षात्कार करें। आत्मा का साक्षात्कार मिलने से ही सरस्वती की भी चमक आपकी बुद्धि में आ जाती है और जो बच्चे पढ़ने लिखने में कमजोर होते हैं वो भी अच्छा कार्य करने लग जाते हैं। इसके बाद कला की उत्पत्ति होती है अगर आप कला को बगैर बहुत आत्मसाक्षात्कार के ही अपनाना चाहें तो वह कला अधूरी रह जाती है या वो बेमय्यादा कहीं ऐसी जगह टकराती है कि जहाँ उसकी कला का नामोनिशान नहीं रह जाता। तो पहले आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करके ही सरस्वती का पूजन करना एक बड़ी शुभ बात है। आज का दिन, आप जानते हैं, नवरात्रि का पहला दिन है और इस दिन भी जो शालीवाहन का शक है उसका भी आज पहला दिन है। मतलब बहुत ही शुभ दिवस पर ये कार्य हो रहा है। तो हमें सरस्वती के प्रति उदासीन नहीं 19920402_Shri Saraswati Puja_Yamunanagar.pdf-page2.txt Original Transcript : Hindi रहना चाहिए। मैं देखती हूँ कि जहाँ-जहाँ लोग खेती करते हैं वहाँ-वहाँ धीरे-धीरे उनका संबंध प्रकृति से होता है और प्रकृति की जो खुबसूरती है उसे वो प्रकट करना चाहते हैं । जो कलाकार होता है वो भी प्रकृति की खूबसूरती | को देखकर हबह उस तरह से न बना उसमें अपनी भावना डालकर उसे एक नया रूप दे देता है। आपने ये जो सब बनाया हुआ है कितना कलात्मक है। कितनी सुन्दरता से चक्र बनाए फिर श्री गणेश बनाए है-सबकुछ देखते ही लेंगे बनता है। जब आप कला को पाने लग जाएंगे और जब आप कला की संवेदना समझ शुभ तब आप कलात्मक चीज़ों की ही ओर रहेंगे। बहुत सी चीजें लोग बनाते हैं, पर कुछ चीजें ऐसी बनती हैं जिसमें स्वयं चैतन्य बहता है। ऐसे तो पृथ्वी तत्त्व से ही बहुत से स्वयंभू निकल आए हैं लेकिन अगर आत्मसाक्षात्कारी मनुष्य कोई पुतला बनाता है या कोई कलात्मक चीज़ बनाता है तो उसमें से भी चैतन्य आने लग जाता है। सुन्दर होने के साथ- साथ ऐसी कृति में एक तरह की अनन्त शक्ति होती है। किसी साधारण कलाकार की बनाई कला शीघ्र समाप्त हो जाती है। उसके प्रति न तो लोगों की आस्था होती है और न ही श्रद्धा लेकिन अगर कोई कलाकार आत्मसाक्षात्कारी हो तो उसकी कला अनन्त तक चलती है क्योंकि उसके अन्दर अनन्त की शक्ति निहित होती है क्योंकि उसने जो भी बनाया वो आत्मा की अनुभूति से बनाया है, जो आत्मा को रुचिकर है जो आत्मा पसंद कुछ करे ऐसी चीज़ वह बनाता है। कलात्मकता इस तरह से मनुष्य में बहुत सुन्दरता से पनपती है और ऐसी जितनी भी कला की चीजें बनती हैं वो हमेशा के लिए संसार में मानी जाती हैं । हिन्दुस्तान से बाहर भी मैंने देखा कि जो कलाकार आत्मसाक्षात्कारी थे उनकी कला आज तक लोग मानते हैं। एक माइकल एन्जेलो नाम के बड़े भारी कलाकार थे। बहुत सुन्दर उन्होंने रचना की। बहुत सुन्दर सब कुछ बनाया। आज तक लोग उसे एक बड़े ही गौरव के साथ समझते हैं। आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति की कला अनन्त की शक्ति से प्लावित होती है। तो आप लोग भी आत्मसाक्षात्कारी हो गए हैं। हरियाणा में इतने लोग आत्मसाक्षात्कारी हो गए और अब और भी बहुत सारे लोग आएंगे, वो भी आपके ही जैसे एक दिन सहजयोगी हो जाएंगे और समझ जाएंगे कि सहजयोग क्या है । किन्तु जब लोग सहजयोग में आ गए तो अब आप कला की ओर अपनी दृष्टि बढ़ायें। कला की ओर दृष्टि बढ़ाने से एक तो जीवन में सौन्दर्य आ जाता है और जीवन का रहन-सहन सुन्दर हो जाता है। उसके लिए जरुरी नहीं कि आप बहत रुपया-पैसा खर्च करें। मिट्टी में भी कला भरी है। आप मिट्टी की भी कोई चीज़ बनायें तो भी वह कलात्मक हो सकती है। हमारे ऊबड़-खाबड़ जीवन में यदि थोड़ी सी कला की झलक आ जाए तो बड़ा सुख और आनन्द मिलता है। इसलिए आप लोगों की दृष्टि अब कला की ओर जाए तो बड़ा अच्छा हो जाए सभी लोगों को के लिए। यहाँ के लोग भी कुछ कलात्मक चीज़ें बनाने का प्रयत्न करें। हाथ से बनी हुई चीज़ों में चैतन्य बहुता है। मशीनों का अत्याधिक प्रयोग करने से ही वातावरण दूषित हो गया है। इसका इलाज ही यह है कि आप कलात्मक चीज़ों की ओर बढ़े। जब लोग कलात्मक चीज़ों की ओर बढ़ेंगे तो एक तरह की श्रद्धा कला के प्रति हो जाएगी। सबसे बड़ी बात तो है कि हम हजारों चीजें जो बेकार की खरीदते हैं वो बंद हो जाएंगी। हाथ से बनी चीज़ों के द्वारा अपने हृदय का आनन्द हम दूसरों को समर्पित करते हैं। ये फूल आपने इतने कलात्मक ढंग से लगाए हैं। इनकी ओर देखते ही हठात मैं निर्विचार हो जाती हँ। मुझे अन्दर कोई विचार नहीं आता निव्व्याज्य निर्विचार होकर के सच में इसे देख रही हूँ। इसको बनाने में जिसने जो कुछ भी आनन्द इसमें डाला है वो पूरा का पूरा मेरे सर से ऐसे बह रहा है जैसे गंगा जी बह रही हैं। उससे एकदम बहुत शान्त और आनन्दमयी भावना आ जाती है। जब तक कलात्मक चीजें नहीं 3 19920402_Shri Saraswati Puja_Yamunanagar.pdf-page3.txt Original Transcript : Hindi होंगी तब तक आपका विचार चलता रहेगा। कलात्मक चीज़ हठात आपको निर्विचारिता में उतारेगी और उसका सौन्दर्य देखते ही आपको ऐसा लगेगा कि आप निर्विचार हैं क्योंकि सौन्दर्य देखने से ही चैतन्य एकदम बहने लगता है और उस सौन्दर्य के कारण ही एकदम से आप निर्विचार हो जाते हैं । इसलिए आदिशंकराचार्य ने इसे सौन्दर्य लहरी कहा। अब यह सोचना है कि किस तरह से यह सौन्दर्य स्थापित हो। सबसे पहले सौन्दर्य में हमेशा वैचित्र्य होना चाहिए, वैराइटी होनी चाहिए । परमात्मा ने यदि सबकी शक्ल एक सी बनायी होती तो कैसे लगते हम लोग? सभी लोग अलग-अलग प्रकार के कपड़े पहनते हैं। हमारे देश की सभी स्त्रियां अलग ढंग, रंगों की साडियां पहनती हैं। यह वैचित्र्य केवल हमारे देश में ही मिलता है। विकसित देशों की औरतें तो गुलामों की तरह एक ही प्रकार के फैशन करती हैं। एक ही प्रकार के बाल बनवाती हैं। उनमें कोई फर्क ही नहीं प्रतीत होता। उनके अन्दर जो आत्मा है वह दबी हुई है। उनमें न वैचित्र्य है और न ही सृजन शक्ति। अब कला का भी यही हाल हो गया है। विदेशों में अच्छी कला कृतियां अधिक नहीं निकलतीं। केवल आलोचक ही रह गए हैं। आलोचक दूसरे आलोचकों की आलोचना में लगा है। अब कलाकार भी डरते हैं क्योंकि कोई सी भी कला बनाओ तो वह क्रिटिक बैठे हुए उनको पहले पड़तालेंगे कि यह ठीक है या नहीं। और दूसरी बात यह बताएंगे कि इसका पैसा कितना मिल सकता है। जब कला पैसे पर उतर आती है तब उसकी आत्मा ही खत्म हो जाती है । कला आनंदमयी होनी चाहिए न कि उससे कितना पैसा मिले। जब आपकी यह धारणा और लक्ष्य हो जाएगा तो स्वयं आत्मा ही आपको ऐसी प्रेरणा देगा कि आप ऐसी- ऐसी सुन्दर चीजें बनायेंगे जो भूतो न भविष्यति, पहले कभी बनी नहीं और न बनेगी। एक से एक कलात्मक चीज़ लोग बनायेंगे और शांत प्रकृति गांवों के लोग इस प्रकार की रचना कर सकते हैं। शान्तिमय, ध्यानावस्था में रहे बिना कला सृजन अधूरा रह जाता है या मर्यादा विहीन। आपको कला का तंत्र तथा तकनीक मालूम होनी चाहिए । जब आपको आत्मसाक्षात्कार होता है तभी आपकी सृजन कला बढ़ जाती है। हमने देखा है सहजयोग में आने के बाद बहुत सारे संगीतकार जगप्रसिद्ध हो गए। गणित जानने वाले चार्टेड अकौंटंट कवि हो गए। उन्होंने पहले कभी कविता नहीं लिखी। इसी प्रकार जो कभी स्टेज पर नहीं आए वो बड़े-बड़े भाषण दे रहे हैं, जिन्होंने गाना कभी गाया नहीं था वो बहुत सुन्दर गाना गाने लग गए। आस्ट्रेलिया में एक सहजयोगिनी बहुत सर्वसाधारण एक कलाकार थी लेकिन आज उसका सारी दुनिया में नाम फैल गया है। इस प्रकार जब आप पर सरस्वती जी की कृपा होती है तो आप कलाकार बन जाते हैं लेकिन आप आत्साक्षात्कारी कलाकार हो जाते हैं। जब आप आत्मसाक्षात्कारी कलाकार हो जाते हैं तब आपका सारा ही व्यक्तित्व बदल जाता है और जो भी सृजन आप करते हैं उसमें वो शक्ति, जिसे मैं अनन्त की शक्ति कहती हूँ, वह समाहित होती है और ऐसी बनाई हुई चीजें, ऐसी क्रिया से जिसने कोई सा भी कार्य सम्पन्न किया हो, उसकी कीमत आंकी ही नहीं जा सकती और अनन्त तक उसकी सौन्दर्य शक्ति प्रदर्शित होती रहती है। चाहे वह कलाकार की मृत्यु को हजारों वर्ष हो जाए तो भी लोग उस कला को देखकर के कहते हैं कितनी सुन्दर चीज़ है। 4 19920402_Shri Saraswati Puja_Yamunanagar.pdf-page4.txt Original Transcript : Hindi सहजयोगियों के लिए बहुत जरुरी है कि वह कला में उतरें और कला को समझे। आपके साथ सरस्वती की कृपा हमेशा बनी रहे। विशेषकर के आज जो आप आत्मसाक्षात्कारी हुए हैं ये तो और भी अच्छी बात है कि आत्मसाक्षात्कार के बाद अगर कला ली जाए तो बहुत ही सुघड़ और बहुत ही सहज हाथ में लग जाती है। जैसे हमारे स्कूलों में परदेश से बच्चे आए इन्होंने कभी कुछ ड्राइंग नहीं किया, इन्हें कुछ पता नहीं था। एकदम सीधे- सीधे चले आए और अब जबसे इनको आत्मसाक्षात्कार मिला है एकदम से ही वो इस कदर बढ़िया सीख गए। एक तो हिन्दी भाषा सीख गए, फिर अब बहुत सुन्दर चित्रकारी करते हैं, फिर अब मिट्टी के बर्तन बनाना शुरू किया। अब उनको लगता है अब क्या बनायें। फिर इन्होंने एक घर बनाया फिर उसके ऊपर माड़ी बनायी और तरह-तरह की चीजें वो बनाने में लगे हैं। ऐसी जो अन्दर से प्रेरणा आती है वह भी सहजयोग की वजह से और हुए इस प्रेरणा को पूरित करने वाली शक्ति भी सहजयोग से आ जाती है| आप सबको अनन्त आशीर्वाद! ০